Story of Narmada

नर्मदा

मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नदी नर्मदा, जिनके बारे में यह भी प्रचलित है कि स्वयं गंगा भी इनकी आरती करने आती हैं। मध्यप्रदेश राज्य की संस्कृति के निर्माण में नर्मदा का केन्द्रीय योगदान है। संस्कृति सलिला नर्मदा के उद्गम स्थल से वर्तमान मध्यप्रदेश की भौगोलिक सीमा तक राज्य की बहुसंख्यक जनजातियों का निवास क्षेत्र है। उद्गम स्थल अमरकंटक (जिला अनूपपुर) से अलीराजपुर जिले तक मध्यप्रदेश की भौगोलिक सीमा में प्रवाहित होती है। इसके विशाल और लम्बे प्रवाह क्षेत्र में प्रदेश की बैगा, गोण्ड, कोल, भारिया, कोरकू और भील जनजातीय समुदायों का निवास है। इसके तट पर विशाल जंगल और वन्य जीव-जन्तुओं का भी बसेरा है। यह सिर्फ जल प्रवाहिनी नदी भर नहीं है। यह मध्यप्रदेश की संस्कृति और अनेक परम्पराओं को जन्म देने वाली नदी भी है। इसी संस्कृति और परम्परा का त्रिआयामी चित्रण यहाँ किया गया है। इसी अमृत सलिला नर्मदा की उत्पत्ति कथा को चित्रकार ने यहाँ बनाया है।

गोण्ड समुदाय में नर्मदा के उद्भव की एक कथा पायी जाती है, जो इस प्रकार है- रेवा नायक और नायकिन जो एक जगह से दूसरी जगह घूमते हुए गायन करते थे। अंतत: अमरकंटक के पास जंगल में ही रहने लगे। रेवा नायक, जो भयानक चर्म रोग से पीडि़त था, वह इस जंगल में बाँस और केले के झुरमुट से निकली एक झिर के पानी से अचानक ठीक हो गया। नायक-नायकिन के काम पर जाने के बाद उनकी बेटी जोहेला के साथ एक बच्ची खेलने आती थी, जो उनके लौटने पर बाँस-केले के झुरमुट में खो जाती थी। एक दिन वे दोनों जल्दी लौट आये। जोहेला के साथ खेलती बच्ची ने उनके पूछने पर अपना नाम नर्मदा बताया और वह उन्हीं के साथ रहने लगी। सयानी होने पर नर्मदा का विवाह सोनभद्र से तय हुआ। विवाह के दिन जोहेला ने नर्मदा से उसके वस्त्र और आभूषण उधार लेकर बारात देखकर आने की इच्छा जाहिर की तो नर्मदा ने फौरन ‘हाँ’ कह दिया। देर शाम दादर नामक जगह से भाँवर के गीतों की आवाज सुन नर्मदा को शक हुआ, क्योंकि अभी तक न बारात आई थी, न ही जोहेला लौटी थी। नर्मदा दादर पहुँची तो देखा जोहेला और सोनभद्र भाँवर ले रहे थे। नर्मदा के कु्रद्ध चेहरे को देख जोहेला और सोनभद्र अलग-अलग दिशाओं में भागे और नर्मदा खिन्न हो उल्टी दिशा में चल पड़ी। उनके होने वाले जेठ भीम ने लिंगो और ढूटी पर्वतों को काँवर में रख नर्मदा को रोकने की कोशिश की किन्तु काँवर टूट गया। दोनों पर्वत गिर गये और नर्मदा उनके बीच से निकल भागी। कपिलधारा में गहरी खाई में छलाँग लगाने के बाद भीमकुण्डी में जब भीम रास्ता रोककर बैठ गये, तब नर्मदा बामिन मछली का रूप धर पाताल चली गई और वहाँ से पंचधारा नामक स्थान पर फिर प्रकट हुई। सारे देवी-देवताओं ने उन्हें रोकने-मनाने की कोशिश की, किन्तु वे पहाड़ी रास्तों से घूमती मैदान में उतरी और फिर खम्भात की खाड़ी में समुद्र में विलीन हो गई।

नर्मदा प्राचीनतम नदियों में से है। नर्मदा के उद्गम कुण्ड-अमरकंटक में हर वर्ष नर्मदा जयंती पर मेला भरता है। आसपास के क्षेत्र की जनजातियों की बारात आज भी नर्मदा नदी पार करते समय उनके साथ हुए छल के लिये उनसे माफी माँगते हैं। इस चित्रात्मक शिल्प में उद्गम स्थल अमरकंटक से खम्बात की खाड़ी में समुद्र में समाहित होने तक के दृश्य को अंकित किया गया है। नर्मदा के पवित्र तटों पर मनाये जाने वाले पर्व-त्योहारों, उत्सव यज्ञ-अनुष्ठानों, जन-जीवन के दैनन्दिन कार्यों को दर्शित किया गया है।

कलाकार- दुर्गा बाई व्याम, सुभाष , मोहित, मानसिंह, रोशिनी, सहद्रा , सुशीला , गंगोत्री, नंदनी, द्वारका , करण, थाना सिंह, भगवान सिंह- डिण्डोरी क्षेत्र

Narmada

Narmada, the life-giving river of Madhya Pradesh, about whom it is also popular that Ganga itself comes to perform her aarti here. A three-dimensional illustration is done here. The painter has created the origin story of this Amrit Salila (River of nectar) Narmada here.

A story of the origin of Narmada is found in the Gond community, which is as follows- Reva Nayak and Nayakin who used to sing while roaming from one place to another. Finally, they started living in the forest near Amarkantak. Reva Nayak was suffering from a terrible skin disease. He was suddenly cured by the water of a spring coming out of a clump of bamboo and bananas in the forest. After the Nayak-Nayakin went to work, a girl child would come to play with their daughter Johela, who would get lost in the bamboo-banana clump when they returned. One day they both returned early. The girl playing with Johela told her name as Narmada on asking and she started living with him. On attaining adulthood, Narmada's marriage was fixed with Sonbhadra. On the day of marriage, Johela expressed her desire to borrow Narmada's clothes and jewelery to see the procession, then Narmada immediately said 'yes'. Late in the evening, Narmada got suspicious after hearing the sound of Bhanwar's songs from a place called Daadar, because till now neither the procession had come, nor the Johela had returned. When Narmada reached Daadar, Johela and Sonbhadra were taking Bhanwar (seven rounds around the fire). Seeing Narmada's angry face, Johela and Sonbhadra ran in different directions and Narmada got upset and started walking in the opposite direction. His to be brother-in-law Bhima tried to stop Narmada by keeping Lingo and Dhuti mountains in Kanwar but Kanwar broke. Both the mountains fell and Narmada ran out from between them. After jumping into the deep ditch in Kapildhara, when Bhim sat down blocking the way at Bhimkundi, then Narmada went to the pataal in the form of a ‘Bamin’ fish and from there reappeared at a place called Panchdhara. All the gods and goddesses tried to stop and persuade her, but she descended into the field moving through the rocky and hilly paths and then merged into the sea at the Gulf of Khambhat.

Narmada is one of the oldest rivers. A fair is held every year on Narmada Jayanti in Amarkantak, the origin of Narmada. Even today, the procession of Baiga, Gond tribals of the surrounding area begs apology for the treachery done to her while crossing the river Narmada. This picture was created by the artist on a long paper roll, which has been enlarged in proportion with technical skill to mount on the wood.