Entry Fees : Rs. 20/- per Indian Visitor.
Rs. 400/- per Foreigner.
Camera Charges - Rs 100/- per Camera
मध्यप्रदेश के निमाड़-मालवांचल में गोबर की भित्ति पर लीपकर उस पर लचकचे गोबर से विभिन्न आकृतियाँ बनाकर उनपर फूलों की पंखुडिय़ाँ चिपकाकर उन आकृतियों को रंग-बिरंगी बना दी जाती है। भित्ति पर अँगूठे और तर्जनी से दबाकर-चिपकाकर गोबर की जो आकृतियाँ उभारी जाती हैं, ये रूपाकार साँझी या संजा कहलाते हैं।
बचपन से विवाह पूर्व तक क्वार मास के श्राद्ध पक्ष में संध्या के समय कुँवारी कन्याएँ अपने-अपने घर के सामने की भित्ति को गोबर से लीपती हैं। उस पर गोबर से ही चौकोर घेरा बनाया जाता है। नीचे की ओर उसमें जगह छोडक़र द्वार रखा जाता है। घेरे में गोबर से प्रतिदिन भिन्न-भिन्न आकृतियाँ बनाई जाती हैं, उन्हें फूलों की पंखुडिय़ों से सजाया जाता है। कुंकुम लगाकर पूजा की जाती है। भोग लगाया जाता है और उस भोग का प्रसाद बाँटा जाता है। इस पूरे अनुष्ठान की अवधि में संजा के गीत गाये जाते हैं। दूसरे दिन उस आकृति को उखाडक़र नयी दूसरी आकृति वहीं बनायी जाती है। यह क्रम सोलह दिन तक चलता है। अंतिम दिन समस्त संजा आकृतियों का विधिवत विसर्जन कर दिया जाता है। यह लोकपर्व वस्तुत: कुँवारी कन्याओं के भावी वैवाहिक जीवन की सुखमय परिकल्पनाओं से परिपूर्ण है और कला-परम्परा का प्रारम्भिक प्रशिक्षण भी है।
कलाकार- कृष्णा वर्मा, दिशा , योगेन्द्र , मुमताज, शैफाली, हीरामनी