Entry Fees : Rs. 20/- per Indian Visitor.
Rs. 400/- per Foreigner.
Camera Charges - Rs 100/- per Camera
In all the tribes of Madhya Pradesh, there is a practice of "Godna ie tattooing on the body as ornaments. Godna is also done in folk but not in all communities. The meaning of tattooing varies according to region and caste. There are no authentic facts about the emergence of Godna, but the narratives of different castes are definitely evidence of its distant past. The most ancient tattoos are the Sun and the Moon. The apparent meaning of wearing them on body is that life is not possible without them and it also indicates the continuity of life.
In order to redecorate the body, one or the other ornamentation is definitely used all over the world. Apart from looking beautiful, its purpose has also been to protect itself from the animals. Godna is not just decoration, but it is also worn as a symbol of ethnic identity, fertility and protection from the wrath of supernatural forces and magical effects. It is believed in all the communities that after death only the godna goes with them, the rest remains here. That's why Godna is true and real jewelry
Jewelry is a carrier of rich culture and a reflection of artistic interest. Wearing ornaments of a woman is the natural Indian women have been conscious of jewelry from the primitive era till date. Ancient statues and other archaeological evidence are proof of it. It is also true that women have brought jewelry into existence. This journey of Jewelry starts from different flowers goes to metal made ornamental Jewelry.
In the tribal and folk communities of Madhya Pradesh, ornaments of different designs are found for the same body part. It is also a belief that tattoos and ornaments are fabricated in shape and design according to the environment, because that particular part of the body has to be more active for protection from insects and shrubs found in that area. Jewelry and Godna have evolved to awaken the veins for activation or for the expected pressure on that particular part. In this gallery ornaments and godna symbols used by the tribal and folk communities of the state have been displayed.
मध्यप्रदेश की सभी जनजातियों में देह अलंकरण में गोदने का प्रचलन है। लोक समुदायों में भी गोदना कराया जाता है परन्तु सभी समुदायों में नहीं होता। गोदने के अभिप्रायों में क्षेत्र और जाति अनुसार भिन्नता होती है। गोदनों के अभ्युदय के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं हैं, परन्तु अलग-अलग जातियों के आख्यान उसकी प्राचीनता के साक्ष्य अवश्य हैं। गोदने के सबसे प्राचीन अभिप्राय सूर्य और चन्द्रमा है। इनके अंग पर धारण करने का स्पष्ट अर्थ ही था कि इनके बगैर जीवन संभव नहीं है, इसके साथ ही जीवन सातत्व को भी संकेतित करता है।
देह को सजाने-संवारने के लिये पूरे विश्व में कोई न कोई अलंकरण अवश्य किया जाता है। इसका उद्देश्य सुन्दर दिखने-दिखाने के अलावा परिवेश के जीव जन्तुओं से अपनी सुरक्षा भी करना रहा है। गोदना केवल अलंकरण मात्र नहीं है बल्कि यह जातीय पहचान, जादुई प्रभाव और पराशक्तियों के प्रकोपों से संरक्षित होने और प्रजनन के प्रतीक रूप में भी धारण किया जाता है। सभी समुदायों में यह मान्यता है कि मृत्यु के उपरान्त सिर्फ गोदने ही साथ जाते हैं, बाकी सब यहीं रह जाता है। इसलिये सच्चा और वास्तविक आभूषण गोदना ही है।
गहने समृद्ध संस्कृति के संवाहक और कलात्मक रूचि के परिचायक हैं। आभूषण धारण करना महिला का स्वभाव है। आदिम युग से लेकर आज तक भारतीय स्त्रियाँ गहनों के प्रति सजग रही हैं। प्राचीन प्रतिमाएँ और अन्य पुरा-साक्ष्य इसके प्रमाण है। यह मान्यता कि महिलाएं ही गहनों को अस्तित्व में लावों, अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। गहनों की यह यात्रा विभिन्न फूलों से आरंभ होकर वर्तमान में अलग-अलग धातुओं में अलंकारिक ढंग से निर्मित होती है।
मध्यप्रदेश के जनजातीय और लोक समुदायों में भिन्न-भिन्न आकल्पन के गहने एक ही अंग के लिये पाये जाते हैं। मान्यता यह भी है कि गोदने और गहने परिवेश के अनुसार आकार आकृति और आकल्पन में गढ़े जाते हैं, क्योंकि उस क्षेत्र में पाए जाने वाले कीटों- वनष्पतियों से सुरक्षा हेतु शरीर के उस अंग विशेष को अधिक सक्रिय लेना होगा। सक्रियता के लिये शिराओं का जागरण अथवा उस अंग पर अपेक्षित दबाव हेतु गहनों और गोदनों का विकास हुआ है। इस दीयों में प्रदेश के जनजातीय और लोक समुदायों द्वारा उपयोग किये जाने वाले गहनों एवं गोटना अभिप्रायों को प्रदर्शित किया गया है।
कलाकार-देव सिंह, सेठलाल, परसादी, अमरजीत, रामकृपाल (कंचनार का पेड़) गोदना कलाकार-जमुनी बाई
संतोष, गुलजार, सुकल, कृष्णपाल, रविन्द्र, महेन्द्र- (नीम का पेड़ )