Sarg Nasaini

Sarg Nasaini

Sarg Nasaini is established at a place named 'Chaugan' of Mandala in the form of a symbol that the path to Devlok (heaven) can be found only through the blessings of the deities. Swarg Nasaini can be attained only by one who is very pure, simple and has the strength and courage to dedicate himself to the deities. According to the Mahabharata, just as only a dog could reach heaven, similarly in today's time also no human being has the courage to go to heaven. Sarg Nasaini is also offered to the goddess in Chaugan. Being extremely sharp, when Ojha-Guniya gets the feeling or power of goddess, then only he can climb on it. Since at that time he has dedicated himself to the goddess, and becomes very sacred and finds himself free from the sufferings caused by climbing it.

After getting rid of any big trouble, a person who believes in the goddess, ritually offers a trishul, khadga or sarg nasaini on the goddess's place. In this way hundreds of Trishul, Khadga and three-four sarang Nasainies can be seen in the form of offerings at the place of Devi. Nasaini (ladder) or Rasaini made of sharp-edged Trishul, Khadga are the indicators of the power of the Goddess. After the feeling of Goddess appears in the body, 'Panda' or 'Sirha' sits on a nail-studded swing or chair or climbs on a sharp-edged Sarg Nasaini, even then no harm comes to his body.

It is popular among the Gonds that in the Draupadi Swayamvara context of the Mahabharata, Arjuna won Draupadi by piercing the ‘Kilkila’ bird sitting on top and the ‘Radhomansa’ fish swimming below with a single arrow by climbing on the Sarg Nasaini made by Agariya.


सरग नसैनी

Srag Naseni Details मण्डला के चौगान नामक स्थान पर सरग नसैनी इस प्रतीक रूप में स्थापित है कि देवलोक अर्थात् स्वर्ग जाने का मार्ग तो देवी-देवताओं के प्रताप से ही पाया जा सकता है। स्वर्ग नसैनी का पात्र अत्यन्त पवित्र-सरल एवं खुद को देवताओं को समर्पित करने की शक्ति और साहस रखने वाला ही प्राप्त कर पाता है। महाभारत प्रसंग के अनुसार जैसे सिर्फ श्वान ही स्वर्ग तक पहुँच पाया, वैसे ही आज के समय में भी किसी मनुष्य के साहस की बात नहीं कि वह स्वर्ग तक जा सके। चौगान में सरग नसैनी चढ़ावे के रूप में भी चढ़ाई जाती है। अत्यन्त धारदार होने के कारण जब ओझा-गुनिया को देवी भाव आता है, तब ही वह इस पर चढ़ पाता है। उस समय क्योंकि वह खुद को देवी को समर्पित कर चुका होता है। अत्यन्त पवित्र हो जाता है तथा इस पर चढऩे से होने वाले कष्टों से स्वयं को मुक्त पाता है।

किसी बड़ी परेशानी से निजात पाने पर देवी की मानता लिये हुए व्यक्ति द्वारा देवी की मढ़ई या चौकी पर अनुष्ठान पूर्वक त्रिशूल, खड्ग या सरग नसैनी चढ़ाई जाती है। इस प्रकार देवी स्थान पर कई बार सैकड़ों त्रिशूल, खड्ग और तीन-चार सरग नसैनियाँ चढ़ावे के रूप में देखी जा सकती हैं। त्रिशूल, खड्ग या धारदार खड्गों से बनी सीढ़ी या नसैनी या रसैनी देवी की शक्ति के सूचक हैं। देवी के शरीर में प्रकट होने पर देवी का पण्डा या सिरहा कील जड़े झूले या कुर्सी पर बैठ जाता है या तेज धार वाली सरग नसैनी पर चढ़ जाता है, फिर भी उसके शरीर को नुकसान नहीं होता।

गोण्डों में प्रचलित महाभारत के द्रोपदी स्वयंवर प्रसंग में अर्जुन ने अगरिया द्वारा बनाई गई सरग नसैनी पर चढक़र ऊपर बैठी किलकिला चिडिय़ा और नीचे तैरती राधोमनसा मछली को एक ही तीर से भेद कर जीता था।


कलाकार:

दिलीप, वीरेन्द्र, भुवनेश्वर, हेमचन्द, गनेश, देवीदीन, सरवन, हेमसिंह

क्षेत्र – डिण्डोरी, मण्डला