Life of Bhuri Bai

भूरी बाई की जीवन यात्रा

By President's Secretariat (GODL-India), GODL-India, Link

मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पिटोल गाँव के एक अत्यन्त साधारण परिवार में जन्मी भूरी बाई, भील समुदाय की एक प्रमुख चित्रकार हैं। वर्ष 1982 में विवाह के बाद अपने पति के साथ वे मजदूरी के लिए भोपाल आ गई। संयोग से यहीं उनकी भेंट निर्माणाधीन भारत-भवन के प्रसिद्ध चित्रकार श्री जे.स्वामीनाथन से हुई और उन्हीं की प्रेरणा और प्रोत्साहन से भूरी बाई के हाथों में रंग, कूची और कागज आ गया।

भूरी बाई के चित्रों की मूल विशेषता भीलों की जातीय संस्कृति के बहुत गहरे आदिम सरोकारों को उकेरना है। चाहे प्रकृति का चित्रण हो, पशु-पक्षियों का अंकन हो अथवा भीली स्मृतियों का रूपायन हो, भूरी बाई ने अपनी निजी शैली और पहचान कायम की है।

भूरी बाई ने भीली चित्रकला को एक नया रूप देकर एक पृथक शैली विकसित की है। अपनी कला को अगली पीढ़ी तक हस्तांतरित करने के प्रयास में भी वे सतत् सक्रिय हैं। श्रीमती भूरी बाई ने देश-विदेश में 100 से अधिक चित्र प्रदर्शनियों, चित्र शिविरों में भागीदारी की है। भूरी बाई को चित्रकला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा शिखर सम्मान, राष्ट्रीय रानी दुर्गावती सम्मान, राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान तथा मध्यप्रदेश गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया है। हाल ही में भूरी बाई को भीली चित्रकला में अभूतपूर्व योगदान के लिए भारत के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्यश्री से विभूषित किया गया है।

भूरी बाई के जीवन की प्रमुख घटनाओं को यहाँ चित्रात्मक अभिव्यक्ति दी गई है। सामान्य परिवार और ग्रामीण परिवेश से यह यात्रा शुरू होकर स्वचेतना के अनुभव और उसकी अभिव्यक्ति से राष्ट्रीय स्तर अपनी पहचान स्थापित करती है। यह संभावना सबके पास है, इसी प्रेरणा के लिए यह अंकन है।